Tuesday, May 15, 2018

kavitayein

सु बह  कहती है ओ मतवाली 
जाग चुकी है तो जाग जा  
सूरज की किरणों को अपने अंदर तू समां जा 

चिड़िया चहक उठी पेड़ो पर 
हवाएं रुख बदलती है 
गलियों और चौबारे पर कोई दस्तक देकर जाती है 

फूल ,काली  सब कहते मुझको 
तू है कोनसी हूर पारी 
हम ने खुशबू दिए जहा को 
तू है कोनसी नूर पारी 

हम भी ना चुके कहने से 
हम तो है अपनी मर्ज़ी  की मलिका 
हमें कोई कहे ना हूर 
ना कहे कोई किसीका नूर 
जो करना है करके रहेंगे 
हम तो है अपनी माज़ी मलिका 

सुबह केहेती है खोल्दे आखें 
सूरज की रौशनी को अपने आखों पे तो पड़ने दे चहक चहक के पंछी बोले 
अपने दिल में तू हमको रख ले 
हमारी साड़ी खुशियां तू लेले 
अपने सारे  घम तू हमको देदे 

सुबह केहेती है जाग जा 
नया सवेरा आया है 
शुभ की चिंता छोड़ दे 
हमने ये नया जाल बिछ्याया है 
खुशियों की चाभी तेरी ओर बढ़ाया है 
तेरी ओरे बढ़ाया है | 

3 comments:

  1. Its the poem related to nature and its the nature wants to say to everyone.

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  2. It's nice ������������

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  3. Very nice...keep it up..very very proud of you😘👌👌

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bhav

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