Thursday, June 14, 2018

banjar

बंजर ज़मीं 

ज़िन्दगी क्या है कैसी है कभी सोचने बैठती हूँ तो समझ आता है की ज़िन्दगी वो नहीं जो सभी को लगता है की वही है असल में ज़िन्दगी की परिभाषा ही अलग है | 
ज़िन्दगी मेरे लिए एक बंजर ज़मीं तरह है ये एक ऐसी ज़मीं है जहा कुछ भी नहीं होता है ना ओस से भरी हरी-भरी बूंदों से नहाई घास ना कोई फल ना कोई फूल ना कोई इंसान और ना ही कोई जानवर | 
जैसे ये बंजर ज़मीं है वैसी ही हमारी ज़िन्दगी होती है | जिस तरह बंजर ज़मीं पर हरियाली ना होने पर  यानि पानी जो जीवन है उसके ना होने पर वह बंजर हो जाती है उसी तरह हमारा जीवन होता है हमारी ज़िन्दगी होती है जिस तरह वहां पानी ना होने पर वहां कुछ नहीं पनहपता वैसे ही ज़िन्दगी को भी अगर उसका पानी उसका जीवन ना मिले तो ज़िन्दगी में भी कुछ नहीं पन्हपेगा बस  वीरानियाँ ही वीरानियाँ होंगी जो एक खतरनाक साये की तरह होती हैं जो इंसान को अंदर ही अंदर खा जाती हैं और पता भी नहीं चलता | 
मेरे लिए भी कुछ इसी तरह की है ज़िन्दगी एक बंजर ज़मीं पर खुशियों की बौछार बारिश की तरह हुई | एक फूल जो मुरझा जाते हैं उनका सही ढंग ध्यान ना रखते हुए तो ज़िन्दगी जिसे पता नहीं कितने संघर्षों से जूझते हुए कितने रोड़ों को पार करते हुए गुज़ारना पड़ता है उसे प्यार की पुचकार और स्नेह का छाव क्यों नहीं देते है हम | 
एक मुश्किल जैसे ही आती है हम फ़ौरन अपने घुटने टेक देते हैं और उसके आगे हार मानने लगते हैं लेकिन हम कभी अपने आप को रोक कर थोड़ी देर सोचते नहीं हैं की ये जो कुछ भी हो रहा है वो मेरे अच्छे के लिए ही हो रहा है क्या पता कुछ अच्छा ही हो जाये लेकिन नहीं हम केवल उसकी बुराई करते रहते हैं या उसे कोसते रहते हैं | 
ज़िन्दगी कोसने के लिए नहीं होती है ज़िन्दगी सही ढंग से जीने के लिए होती है वो हमारे लिए मुश्किलें इस लिए लाती है ताकि हम और मज़बूत बन सके और खुद की ज़िन्दगी को सवारें ठीक उसी तरह जैसे एक बंजर ज़मीं को बरसात की पहेली फुहार हरी-भरी धरती बना देती है और ज़ोर-शोर से उसका स्वागत किया जाता है इस पूरी सृष्टि का | 
वो भी बड़े हर्षा और उल्हास के साथ | 
तो ज़िन्दगी जियो मन भर के पर यदि कभी ज़िन्दगी में सूखा आये तो एक बार सोचना की उस बंजर ज़मीं के साथ क्या  हुआ था ????

ज़मीं बंजर होये भले 
मन बंजर होये ना पाए 
अपनी -अपनी खुशियां ढूंढों 
कुछ पंछी उड़ जाये 
हरी -भरी बगिया में बोले बारिश की हर बून्द 
कहे बदरिया जी ले री बावरी 
ये सावन का मौसम आगे कहाँ से होये | 

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