ज़िन्दगी एक रिश्ता(शुरुआत एक नयी कहानी की)
इस दुनिया में सभी ने कभी न कभी राधा-कृष्ण की प्रेम कहानी तो सुनी होगी ही | पर असल ज़िन्दगी में शायद ऐसा नहीं हो सकता ऐसी प्रेम कहानी नहीं हो सकती | पर ऐसी एक कहानी है |
माया और कबीर की कहानी | ये कहानी भी कुछ ऐसी ही है राधा-कृष्ण की तरह | इस कहानी की शुरुआत कहें या अंत पर है यही इसे प्रेम कहानी का रूप दें या एक औरत और एक मेहबूबा की दास्ताँ नहीं जानते पर शुरुआत तो हो गई ऐसी एक कहानी की |माया एक गरीब परिवार से थी अपने बाबा के साथ रहती थी | उसकी ज़िन्दगी में सिवाय उसके बाबा के कोई नहीं था बस उसकी बुरी किस्मत जो उसके साथ सदा रहती थी उसका बेकार ,जला हुआ चेहरा जो उसकी हाथ की रेखाओं की लकीरों को कभी बदलने ही नहीं देती | बस एक ही तो खूबसूरती थी उसमे उसका सुरीला गला | उसकी आवाज़ में वो जादू था जो उड़ते हुए पंछी को भी ठहरना सीखा दे ,जो मुरझाये फूल को फिर से खिलना सीखा दे ,जो एक रट हुए को हसना सीखा दे | माया एक दिन यूँहीं गुनगुना रही थी एक मीठा सा प्यारा सा गीत और वही पास से एक गाड़ी गुज़र रही थी अचानक वो गाड़ी रुक गई और उसमे से निकला एक साफ़ ,सुघर ,नौजवान कबीर गाड़ी से उतरकर उसने बस एक ही आवाज़ सुनी थी आज तक जो उसके कानो में एक मधु जैसे काम कर रही थी उस आवाज को सुनने के बाद कबीर मनो जैसे स्तब्ध रह गया | बस एक चाह रही थी उसकी की कैसे भी करके उसका नाम और चेहरा दिख जाये | माया एक मदिर गयी उस दिन और वही आया कबीर उसने माया से उसका नाम पूछा और कहा की अपना चेहरा दिखाए पर वो हकीकत से बिलकुल अनजान था की माया हमेशा अपना चेहरा ढक के रखती थी किसीको भी नहीं दिखाथी उसने कबीर से भी यही कहा की बाबूजी मैं अपना चेहरा नहीं दिखा सकती और कृपा करके मुझसे दूर रहिये | पर कबीर भी एक ज़िद्दी उसने भी ये सोच लिया था की वो अगर किसी से प्यार करेगा तो माया और शादी भी उसी से करेगा | लाख कोशिशों के बावजूद माया अपने आप को रोक न पाई कबीर की होने से ,उससे प्यार करने से | लेकिन अब तक उसने उसका चेहरा नहीं देखा था शादी हुई और शादी की पहली रात को ही कबीर को माया का सच पता चल गया की उसका चेहरा वो नहीं जो कबीर ने सोचा था उसने कहा की माया "तुमने अपनी माया दिखा दी तुम मेरी माया नहीं हो सकती मेरी माया ऐसी नहीं हो सकती " और वो उसे रोटा बिलकता छोड़ गया और माया की तलाशा में निकल गया |
माया आई कबीर से मिलने पर उसने वही कहा जो उसे कहना था उसने कहा की बाबूजी आपकी अब शादी हो चुकी है और अब वो आपकी पत्नी है आपको उसके पास होना चाहिए मेरे पास नहीं और फिर कबीर ने कहा की मैं उसे अपनी पत्नी नहीं मानता मैं तुमसे प्यार करता हु और बस तुम्ही हो मेरी ज़िन्दगी | माया उसे समझाती है की ये ठीक नहीं मैं आपकी "मेहबूबा हूँ ,और वो आपकी पत्नी मैं उसकी जगह कभी नहीं ले सकती | एक प्रेम कहानी की शुरुआत हुई पर इस प्रेम कहानी में एक पत्नी का मान एक मेहबूबा से बहुत ज़ादा होता है | वो ही एक औरत है और वही एक सच्ची जीवन साथी मेरा सिर्फ यही तक साथ था और अब माया के पैन की कोई ज़रूरत नहीं | बस ये कह के माया चली गई हमेशा-हमेशा के लिए | कबीर की दुनिया वीरान करके |आज भी माया कबीर से उतना ही प्यार करती है जितना पहले करती थी पर वो उस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर सकी की उसका पति उसका प्रेमी उससे ही अपने आप को छुड़ा रहा है | इस कहानी में ना तो कबीर को उसकी मेहबूबा मिली और ना ही पत्नी | जब तक कबीर को एह्सास होता उसकी दुनिया खली हो चुकी थी| आज भी कबीर माया का इंतज़ार कर रहा है और आज तक उसने किसी और को अपनी ज़िन्दगी में शामिल नहीं किया | ये थी माया और कबीर की कहानी जो पूरी हो कर भी अधूरी रह गई | बस एक गलती के कारण जो हकीकत है उसे ना स्वीकारने की जो जैसा है उसे वैसे ही ना अपनाने की |
मन बैरी होये भले
सुख न छीने कोये
सुनदर-सुघर न होये बिछोरे
पर होये प्रेम अनोय|
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