जो जैसा है वो वैसा तो नहीं
ख़ामोशी का आलम था
मदहोशी का सावन था |
झूम कर आया है वो
नाच कर गया है वो |
अपनों से तारीफें सुनी
गैरों की तानें सुनी |
अपने ख्वाबों की राहें बुनी
लेकिन बून न सकीय एक कली |
राहों की ज़रूरत तो नहीं
काटों की इबादत तो नहीं |
वो हमारा तो नहीं |
रात काली थी लेकिन
लेकिन खोई हुई तो नहीं |
आसमाँ सितारों से भरा था
लेकिन वो सितारों सा तो नहीं |
दुनियां भरी पड़ी गैरों से
लेकिन दरिंदों से तो नहीं |
लोगों की राहें मुड़ी हुई सी हैं
लेकिन वो मुसाफिर तो नहीं |
आये हैं जो दर पर मेरे
वो मेहरबाँ हैं |
कोई काफिर तो नहीं
जो है हमारे पास
वो हमारे तो नहीं |
वो हमारे तो नहीं ||
No comments:
Post a Comment