Thursday, June 28, 2018

jo jaisa hai vo vaisa to nahi

जो जैसा है वो वैसा तो नहीं 

ख़ामोशी का आलम था 
मदहोशी का सावन था | 
झूम कर आया है वो 
नाच कर गया है वो | 

अपनों से तारीफें सुनी  
गैरों की तानें सुनी | 
अपने ख्वाबों की राहें बुनी 
लेकिन बून न सकीय एक कली | 

राहों की ज़रूरत तो नहीं 
काटों की इबादत तो नहीं | 
जो था हमारे पास 
वो हमारा तो नहीं | 

रात काली थी लेकिन 
लेकिन खोई हुई तो नहीं | 
आसमाँ सितारों से भरा था 
लेकिन वो सितारों सा तो नहीं | 

दुनियां भरी पड़ी गैरों से 
लेकिन दरिंदों से तो नहीं | 
लोगों की राहें मुड़ी हुई सी हैं 
लेकिन वो मुसाफिर तो नहीं | 

आये हैं जो दर पर मेरे 
वो मेहरबाँ हैं | 
कोई काफिर तो नहीं 
 जो है हमारे पास 
वो हमारे तो नहीं | 
वो हमारे तो नहीं || 

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