नगमा
कहते हैं की अगर कोई हमसे मिलता है या हम किसी से मिलते हैं तो वो इत्तेफ़ाक़ नहीं होता है | उसके पीछे कोई न कोई मकसद ज़रूर होता है यूहीं नहीं होता है सब | कुछ ना कुछ वजह ज़रूर होती है |
ऐसी ही एक कहानी है उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर की एक लड़की की जो थी तो एक छोटे से घराने से पर उसके सपने उनींदा थे बहुत गहरे और बहुत पाक | वो एक छोटे से घराने से होने के बावजूद उसके सपने बड़े होते थे और उनको पूरा करने के लिए जो जूनून चाहिए वो होते थे | कहते हैं ना की हर दिन एक सा नहीं होता बस वही हुआ एक दुर्घटना में उसके माँ- पिता इंतक़ाल हो गया वो बिलकुल अकेली हो गई थी इसके बाद उसके पास तो ना कोई था और ना कोई और नाही उसके साथ | वक़्त ने बड़े सितम किये उस बिचारि पर लेकिन उसने खुद पर कभी तरस नहीं खाया उपरवाले की मर्ज़ी समझ के उसने सब क़ुबूल किया | इसके बाद वो अपने मामूजान के साथ रहने लगी उसने अच्छी खसी पढ़ाई की थी तो उसे नौकरी भी मिल गई और उसके मामूजान भी नौकरी करते थे दोनों ही कमाते थे और घर चलाते थे | बहुत सारी मुश्किलों का सामना करने के बाद उसने अपनी काबिलियत से अपना खुद का एक मकान लिया लखनऊ में और वो और उसके मामूजान रहने लगे ऐसे करते -करते ५ साल गुज़र गए | उसने कभी अपने बारे में नहीं सोचा बस अपने परिवार का नाम ऊँचा रखने की कोशिश की | पर कोई था जिसे उसकी फ़िक्र थी उसके मामूजान उसके माँ -और पिता के बाद बस वही रह गए थे उसकी ज़िन्दगी में और वो उनके लिए ही जी रही थी | उस वक़्त मामूजान ने उससे कहा की" बिटिया "मामूजान उसे बिटिया कहते थे अब बस भी करो कितना हमारे बारे में सोचोगी अब अपने बारे में सोचो अपनी शादी के बारे में सोचो बहुत कर लिया तुमने हमारे लिए अब अपने लिए करो | पर शायद उपरवाले को ये नहीं मंज़ूर था वो शायद उसके लिए कुछ और ही बून रहे थे उसके लिए उसके सपने |
पर सपने कब बदल जाते हैं हमें कहा पता होता है वो तो बस हो जाते हैं | खुदा ने सच में वो किया जो उसने नहीं सोचा था | एक शक्श की इस कहानी में दाखिला करवाया वो थे तो लखनऊ के नवाब पर दिल उनका भी वही था जो उसका था नवाबजी ने उसे पहेली बार सड़क पर जाते हुए देखा था अचानक और बार बार लगातार वे मिलते ही रहते थे कभी सड़क पर खड़े हुए बस का इंतज़ार करते हुए तो कभी बाज़ार जाते हुए लेकिन इस मुलाकात में उसने कभी नवाबजी को एक नज़र नहीं देखा था और नवाबजी बस उसकी ही सूरत देखना और महसूस करने की चाह रखते थे | एक दिन नवाबजी उसका पीछा करते करते उसके घर तक पहुंचे पर वही हुआ जो हमेशा होता था उसने इस बार भी नवाबजी को एक नज़र देखा नहीं बस यूँहीं सर को झुकाये चली गई वो थी उनकी पहेली रूबरू मुलाकात जो सिर्फ एक ख़ामोशी का नाम देती थी | पर इस ख़ामोशी को भी नवाबजी ने खुदा का ही एक इशारा समझा | और वे चले गए | ज़िन्दगी ने क्या हसीं सितम किया था की वे एक दूसरे की तरह ही सोचते थे और मानते भी थे बस किस्मत ने उन दोनों को ऐसे घराने में लाया जहा से उनका मिलना शायद ही मुमकिन होता |
वो थी एक रात जब वो घर जा रही थी काम करके| कुदरत ने कुछ अलग ही खुमार कर दिया था उस रात बहुत ज़ोर की बरसात हो रही थी बिजली कड़क रही थी और तेज़ हवाएं चल रही थी | और वो रात उनके लिए थी बहुत ही ख़ास उस रात वो बहुत ही भीग चुकी थी नवाबजी अपने रस्ते अपनी गाडी में उसी रस्ते जा रहे थे तभी उन्होनें देखा एक सेहमी-सेहमी सी भीगी हुई लड़की रस्ते पर कड़ी थी और किसी साधन का इंतज़ार इंतज़ार कर रही थी नवाबजी ने फ़ौरन गाड़ी घूमाया और उस तरफ गए गाड़ी से उतरकर उन्होनें पहेली बार उसका चेहरा देखा मासूम सी एक दम कोहिनूर का हिरा नवाबजी बस देखते ही रह गए और उस रात उसने पहेली बार अपनी आखें उठाई और नवाबजी को देखा नवाबजी ने ऐसा कुदरत का करिश्मा पहले कभी नहीं देखा था मस्त निगाहें ,संगेमरमर सा बदन और घनी ज़ुल्फें बस वो एक वक़्त उनके दरमियाँ ठहर सा गया था वो एक दूसरे को बस देखे जा रह थे बिना कुछ बोले बिना कुछ कहे तब तक नवाबजी उसका नाम भी नहीं जानते थे फिर वक़्त का हसीं सितम कहें या कुदरत का ही कोई इशारा नवाबजी ने उससे मदहोश आवाज़ में पूछा "आपका नाम क्या है मोहतरमा "
तभी एक हलकी सी मधुर भरी आवाज़ से उसने कहा "नगमा "बस वहीँ वक़्त की गति जैसे ठहर सी गयी नगमा उनसे बहुत मोहब्बत करती थी यूँ तो उसने कभी उन्हें देखा नहीं था पर उनकी तस्वीर एक अखबार में देखि थी तभी से वो नवाबजी से बेइन्तेहाँ मोहब्बत करने लगी और वही बात थी नवाबजी में उन्होनें नगमा को देखा तो था पर वैसे नहीं जैसे की उस रात देखा था | शायद खुदा ने आज तक इसीलिए नगमा को इस तलाश में कभी जाने ही नहीं दिया क्यूंकि उसे एक शेह्ज़ादा मिलने वाला था और वो मिल गया | एक नवाब की शहज़ादी बन गई नगमा और देखते ही देखते उनकी मोहब्बत ने एक फ़साना और लिख दिया नगमा उस वक़्त की एक मशहूर लेखिका बन गई और उसने कई किताबें लिखी जो सबसे ऊंचाई पर थी वो थी उसकी की एक कहानी "नगमा "(कहानी कहो या पहेली )|
बस यही थी नगमा की तासीर ,उसकी हक़ीकत ,उसके सपने |
नगमा कोई हिरा ना हो
तो कोई उसे खरीदेगा नहीं
हिरा अगर पत्थर ना हो
तो कोई उसे तराशेगा नहीं |
बन के किसी का हिरा नहीं रहना मुझे
रहना है बस वही जो हूँ मैं
नगमा किसी और का नहीं
खुदका ही नगमा बन के रहना है मुझे |
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