नाचे मोरनी मन मतवाली गाये हर गीत सुरिलो वाली चहक-चहक कर पंछी आजा अब होगी रास हर जनम की श्याम सुन्दर मधुर सरगम प्रेम का हर गीत मधुबन लेकर खुशियां आया है मौसम लोग नाचे झूम के लोग गायें घूम के रास रचैया मोहन मुरलिया कहे की , आया सावन झूम के ||
इस दुनिया में सभी ने कभी न कभी राधा-कृष्ण की प्रेम कहानी तो सुनी होगी ही | पर असल ज़िन्दगी में शायद ऐसा नहीं हो सकता ऐसी प्रेम कहानी नहीं हो सकती | पर ऐसी एक कहानी है |
माया और कबीर की कहानी | ये कहानी भी कुछ ऐसी ही है राधा-कृष्ण की तरह | इस कहानी की शुरुआत कहें या अंत पर है यही इसे प्रेम कहानी का रूप दें या एक औरत और एक मेहबूबा की दास्ताँ नहीं जानते पर शुरुआत तो हो गई ऐसी एक कहानी की |
माया एक गरीब परिवार से थी अपने बाबा के साथ रहती थी | उसकी ज़िन्दगी में सिवाय उसके बाबा के कोई नहीं था बस उसकी बुरी किस्मत जो उसके साथ सदा रहती थी उसका बेकार ,जला हुआ चेहरा जो उसकी हाथ की रेखाओं की लकीरों को कभी बदलने ही नहीं देती | बस एक ही तो खूबसूरती थी उसमे उसका सुरीला गला | उसकी आवाज़ में वो जादू था जो उड़ते हुए पंछी को भी ठहरना सीखा दे ,जो मुरझाये फूल को फिर से खिलना सीखा दे ,जो एक रट हुए को हसना सीखा दे | माया एक दिन यूँहीं गुनगुना रही थी एक मीठा सा प्यारा सा गीत और वही पास से एक गाड़ी गुज़र रही थी अचानक वो गाड़ी रुक गई और उसमे से निकला एक साफ़ ,सुघर ,नौजवान कबीर गाड़ी से उतरकर उसने बस एक ही आवाज़ सुनी थी आज तक जो उसके कानो में एक मधु जैसे काम कर रही थी उस आवाज को सुनने के बाद कबीर मनो जैसे स्तब्ध रह गया | बस एक चाह रही थी उसकी की कैसे भी करके उसका नाम और चेहरा दिख जाये | माया एक मदिर गयी उस दिन और वही आया कबीर उसने माया से उसका नाम पूछा और कहा की अपना चेहरा दिखाए पर वो हकीकत से बिलकुल अनजान था की माया हमेशा अपना चेहरा ढक के रखती थी किसीको भी नहीं दिखाथी उसने कबीर से भी यही कहा की बाबूजी मैं अपना चेहरा नहीं दिखा सकती और कृपा करके मुझसे दूर रहिये | पर कबीर भी एक ज़िद्दी उसने भी ये सोच लिया था की वो अगर किसी से प्यार करेगा तो माया और शादी भी उसी से करेगा | लाख कोशिशों के बावजूद माया अपने आप को रोक न पाई कबीर की होने से ,उससे प्यार करने से | लेकिन अब तक उसने उसका चेहरा नहीं देखा था शादी हुई और शादी की पहली रात को ही कबीर को माया का सच पता चल गया की उसका चेहरा वो नहीं जो कबीर ने सोचा था उसने कहा की माया "तुमने अपनी माया दिखा दी तुम मेरी माया नहीं हो सकती मेरी माया ऐसी नहीं हो सकती " और वो उसे रोटा बिलकता छोड़ गया और माया की तलाशा में निकल गया |
माया आई कबीर से मिलने पर उसने वही कहा जो उसे कहना था उसने कहा की बाबूजी आपकी अब शादी हो चुकी है और अब वो आपकी पत्नी है आपको उसके पास होना चाहिए मेरे पास नहीं और फिर कबीर ने कहा की मैं उसे अपनी पत्नी नहीं मानता मैं तुमसे प्यार करता हु और बस तुम्ही हो मेरी ज़िन्दगी | माया उसे समझाती है की ये ठीक नहीं मैं आपकी "मेहबूबा हूँ ,और वो आपकी पत्नी मैं उसकी जगह कभी नहीं ले सकती | एक प्रेम कहानी की शुरुआत हुई पर इस प्रेम कहानी में एक पत्नी का मान एक मेहबूबा से बहुत ज़ादा होता है | वो ही एक औरत है और वही एक सच्ची जीवन साथी मेरा सिर्फ यही तक साथ था और अब माया के पैन की कोई ज़रूरत नहीं | बस ये कह के माया चली गई हमेशा-हमेशा के लिए | कबीर की दुनिया वीरान करके |
आज भी माया कबीर से उतना ही प्यार करती है जितना पहले करती थी पर वो उस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर सकी की उसका पति उसका प्रेमी उससे ही अपने आप को छुड़ा रहा है | इस कहानी में ना तो कबीर को उसकी मेहबूबा मिली और ना ही पत्नी | जब तक कबीर को एह्सास होता उसकी दुनिया खली हो चुकी थी| आज भी कबीर माया का इंतज़ार कर रहा है और आज तक उसने किसी और को अपनी ज़िन्दगी में शामिल नहीं किया | ये थी माया और कबीर की कहानी जो पूरी हो कर भी अधूरी रह गई | बस एक गलती के कारण जो हकीकत है उसे ना स्वीकारने की जो जैसा है उसे वैसे ही ना अपनाने की |
ज़िन्दगी बहुत कीमती होती है और मिलती सिर्फ एक बार है तो उसे पूरी तरह जीना चाहिए बजाये इसके की क्या सबसे ज़ादा सुन्दर है और क्या नहीं अगर किसी की आवाज़ अच्छी है तो हो सकता है की उसकी सूरत खुबसुरत न हो इसका मतलब ये नहीं की वो प्यार करने के लिए नहीं ,वो सम्मान के लिए नहीं |
कैसा लगता है ना जब कोई एक औरत को अलग नज़रिये से देखता है | पता नहीं कैसे उनका मन गवारा करता है इसके लिए ,कुछ अलग ही सोच बना लेते हैं ऐसे लोग जो औरत को सिर्फ एक चीज़ समझते हैं ,लेकिन शायद उन्हें ये नहीं पता की औरत का वही एक सवरूप नहीं है जो वो देखते हैं जो की सिर्फ एक मर्द के लिए होती है उसका वजूद ,उसकी पहचान इनसब से कही ज्यादा ऊपर होता है ,पर शायद उन लोगों को समझने में ही भूल रही है जो एक औरत को कभी समझ ही नहीं पाए |
ऐसी ही एक कहानी है दो औरतों की जिनकी ज़िन्दगी इसी तरह दो राहों की तरह है |
ये कहानी है उस औरत की जिसने कभी एक अच्छा परिवार और सुघर पति की कामना की थी जिसने ये कभी नहीं सोचा था की जो वो चाह रही है वैसा शायद नहीं हो उसके साथ क्यूंकि वो एक भोली-भाली शांत स्वभाव की एकदम शुशील लड़की थी कोई नहीं कह सकता था की उसका चरित्र लांछनवाला है कोई भी अगर उसके बारे कुछ अलग सोचता भी था तो यकीं करना मुमकिन नहीं होता था | बस फिर क्या वही हुआ जो हर एक १८ साल की लड़की के साथ होता है उसकी शादी करवा दी गई एक ऐसे इंसान से जो बाहर से दीखता तो था एकदम शरीफ ,एक नेक इंसान पर था अंदर से शैतान पर इसकी खबर उसे न थी वो तो उससे प्यार करने लगी थी उसे अपना सब कुछ मानने लगी थी दिन बीतते गए और ऐसे करते -करते ९ साल बीत गए अब तक तो उसे पता चल गया की उसने जिस वर की कामना की थी वो वैसा नहीं था बल्कि उसके विपरीत था | उसने उसके दिए हर ज़ुल्म सहे पर फिर भी कुछ नहीं कहती थी कभी उसके खिलाफ कोई आवाज़ नहीं उठाई कभी उसके ऊपर ऊँगली नहीं उठाई बस अपना कर्त्तव्य समझ के निभाते गयी | एक दिन ऐसा आया उसके जीवन में की दिल देहल जाये अगर सुनाने लगे तो | वो थी एक रात जब उसके पति ने उसका सौदा कर दिया एक ऐसे ठेकेदार को जो उसका बिज़नेस में बहुत ज्यादा पैसा लगा रहा था और उसके लालच में आकर पैसा कमाने के चक्कर में उसने अपनी ही पत्नी का सौदा कर दिया | इतना ही नहीं उसके साथ इतना बुरा किया की उसके गर्भ में पलती एक नन्ही जान को भी नहीं छोड़ा | जब उसे पता चला की उसकी पत्नी माँ बनाने वाली है तो उसने उसे प्रताड़ित किया उसे वो ज़ख्म दिए जिससे वो जीवन भर खुद पर या किसी और पर विश्वास नहीं कर सकती थी, पर कहते हैं ना की ऊपरवाला उतना ही बुरा किसी के साथ करता है जो जितना सहन कर सकता है | ये थी उसकी कहानी जो डर ,दशहत ,और एक हिंसा की शिकार थी एक कमज़ोर औरत की |
पर हर डर ,हर हिंसा का हिसाब सब को चुकाना पड़ता है उस आदमी को भी चुकाना पड़ा | जिस औरत के साथ उसने ये सब किया था वही औरत एक चंडी का रूप बदल कर आयी और उसने उस आदमी का वही हर्ष किया जो उसने उसका और उसके नन्हे से बच्चे के साथ किया था | उसने उसे ख़त्म कर दिया और वो जेल चली गई जेल जाने के बाद ६ महीने बाद उसने एक नन्हे से बच्चे को जन्म दिया ये बच्चा उसके निर्दयी पति की निशानी ज़रूर थी पर उसने कभी उसका साया भी उसपर पड़ने नहीं दिया | उसने उसे जेल में ही पला और देखते-देखते २५ साल गुज़र गए और उसके अच्छे चाल चलन के नाते उसकी रिहाई कर दी गई जब वो वापिस आयी तो उसने देखा की उसकी बिटिया अब एक बड़ी अफसर बन गयी है | पर वही हुआ जिसका उसे सब से ज़ादा अफ़सोस था उसकी बेटी को सब नीची निगाह से देखने लगे और उसे एक खुनी की बेटी कहने लगे | हालांकि वो अपने पिता के बारे में जानती थी इसीलिए उन लोगों की बातों का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था और उसने ऐसे कई औरतों के लिए इन्साफ किया है और खुद के लिए लड़ने की एक संस्था भी खोली है जहा मजबूर औरत अपनी कहानी के पन्नो को बदल सके और उसपर एक नयी सिहाई की कलम चला सकें |
बस यही थी उस औरत की कहानी | पर ये सिर्फ उस औरत की कहानी नहीं है बल्कि ये उन सभी की कहानी है जो अपने आपको कमज़ोर समझने की भूल बैठती हैं और ऐसे हिंसा की शिकार होती हैं |
तो रुकना नहीं है और कमज़ोर तो बिलकुल भी नहीं बनाना है बस खड़े होना है और अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी होगी |
कहते हैं की अगर कोई हमसे मिलता है या हम किसी से मिलते हैं तो वो इत्तेफ़ाक़ नहीं होता है | उसके पीछे कोई न कोई मकसद ज़रूर होता है यूहीं नहीं होता है सब | कुछ ना कुछ वजह ज़रूर होती है |
ऐसी ही एक कहानी है उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर की एक लड़की की जो थी तो एक छोटे से घराने से पर उसके सपने उनींदा थे बहुत गहरे और बहुत पाक | वो एक छोटे से घराने से होने के बावजूद उसके सपने बड़े होते थे और उनको पूरा करने के लिए जो जूनून चाहिए वो होते थे | कहते हैं ना की हर दिन एक सा नहीं होता बस वही हुआ एक दुर्घटना में उसके माँ- पिता इंतक़ाल हो गया वो बिलकुल अकेली हो गई थी इसके बाद उसके पास तो ना कोई था और ना कोई और नाही उसके साथ | वक़्त ने बड़े सितम किये उस बिचारि पर लेकिन उसने खुद पर कभी तरस नहीं खाया उपरवाले की मर्ज़ी समझ के उसने सब क़ुबूल किया | इसके बाद वो अपने मामूजान के साथ रहने लगी उसने अच्छी खसी पढ़ाई की थी तो उसे नौकरी भी मिल गई और उसके मामूजान भी नौकरी करते थे दोनों ही कमाते थे और घर चलाते थे | बहुत सारी मुश्किलों का सामना करने के बाद उसने अपनी काबिलियत से अपना खुद का एक मकान लिया लखनऊ में और वो और उसके मामूजान रहने लगे ऐसे करते -करते ५ साल गुज़र गए | उसने कभी अपने बारे में नहीं सोचा बस अपने परिवार का नाम ऊँचा रखने की कोशिश की | पर कोई था जिसे उसकी फ़िक्र थी उसके मामूजान उसके माँ -और पिता के बाद बस वही रह गए थे उसकी ज़िन्दगी में और वो उनके लिए ही जी रही थी | उस वक़्त मामूजान ने उससे कहा की" बिटिया "मामूजान उसे बिटिया कहते थे अब बस भी करो कितना हमारे बारे में सोचोगी अब अपने बारे में सोचो अपनी शादी के बारे में सोचो बहुत कर लिया तुमने हमारे लिए अब अपने लिए करो | पर शायद उपरवाले को ये नहीं मंज़ूर था वो शायद उसके लिए कुछ और ही बून रहे थे उसके लिए उसके सपने |
पर सपने कब बदल जाते हैं हमें कहा पता होता है वो तो बस हो जाते हैं | खुदा ने सच में वो किया जो उसने नहीं सोचा था | एक शक्श की इस कहानी में दाखिला करवाया वो थे तो लखनऊ के नवाब पर दिल उनका भी वही था जो उसका था नवाबजी ने उसे पहेली बार सड़क पर जाते हुए देखा था अचानक और बार बार लगातार वे मिलते ही रहते थे कभी सड़क पर खड़े हुए बस का इंतज़ार करते हुए तो कभी बाज़ार जाते हुए लेकिन इस मुलाकात में उसने कभी नवाबजी को एक नज़र नहीं देखा था और नवाबजी बस उसकी ही सूरत देखना और महसूस करने की चाह रखते थे | एक दिन नवाबजी उसका पीछा करते करते उसके घर तक पहुंचे पर वही हुआ जो हमेशा होता था उसने इस बार भी नवाबजी को एक नज़र देखा नहीं बस यूँहीं सर को झुकाये चली गई वो थी उनकी पहेली रूबरू मुलाकात जो सिर्फ एक ख़ामोशी का नाम देती थी | पर इस ख़ामोशी को भी नवाबजी ने खुदा का ही एक इशारा समझा | और वे चले गए | ज़िन्दगी ने क्या हसीं सितम किया था की वे एक दूसरे की तरह ही सोचते थे और मानते भी थे बस किस्मत ने उन दोनों को ऐसे घराने में लाया जहा से उनका मिलना शायद ही मुमकिन होता |
वो थी एक रात जब वो घर जा रही थी काम करके| कुदरत ने कुछ अलग ही खुमार कर दिया था उस रात बहुत ज़ोर की बरसात हो रही थी बिजली कड़क रही थी और तेज़ हवाएं चल रही थी | और वो रात उनके लिए थी बहुत ही ख़ास उस रात वो बहुत ही भीग चुकी थी नवाबजी अपने रस्ते अपनी गाडी में उसी रस्ते जा रहे थे तभी उन्होनें देखा एक सेहमी-सेहमी सी भीगी हुई लड़की रस्ते पर कड़ी थी और किसी साधन का इंतज़ार इंतज़ार कर रही थी नवाबजी ने फ़ौरन गाड़ी घूमाया और उस तरफ गए गाड़ी से उतरकर उन्होनें पहेली बार उसका चेहरा देखा मासूम सी एक दम कोहिनूर का हिरा नवाबजी बस देखते ही रह गए और उस रात उसने पहेली बार अपनी आखें उठाई और नवाबजी को देखा नवाबजी ने ऐसा कुदरत का करिश्मा पहले कभी नहीं देखा था मस्त निगाहें ,संगेमरमर सा बदन और घनी ज़ुल्फें बस वो एक वक़्त उनके दरमियाँ ठहर सा गया था वो एक दूसरे को बस देखे जा रह थे बिना कुछ बोले बिना कुछ कहे तब तक नवाबजी उसका नाम भी नहीं जानते थे फिर वक़्त का हसीं सितम कहें या कुदरत का ही कोई इशारा नवाबजी ने उससे मदहोश आवाज़ में पूछा "आपका नाम क्या है मोहतरमा "
तभी एक हलकी सी मधुर भरी आवाज़ से उसने कहा "नगमा "बस वहीँ वक़्त की गति जैसे ठहर सी गयी नगमा उनसे बहुत मोहब्बत करती थी यूँ तो उसने कभी उन्हें देखा नहीं था पर उनकी तस्वीर एक अखबार में देखि थी तभी से वो नवाबजी से बेइन्तेहाँ मोहब्बत करने लगी और वही बात थी नवाबजी में उन्होनें नगमा को देखा तो था पर वैसे नहीं जैसे की उस रात देखा था | शायद खुदा ने आज तक इसीलिए नगमा को इस तलाश में कभी जाने ही नहीं दिया क्यूंकि उसे एक शेह्ज़ादा मिलने वाला था और वो मिल गया | एक नवाब की शहज़ादी बन गई नगमा और देखते ही देखते उनकी मोहब्बत ने एक फ़साना और लिख दिया नगमा उस वक़्त की एक मशहूर लेखिका बन गई और उसने कई किताबें लिखी जो सबसे ऊंचाई पर थी वो थी उसकी की एक कहानी "नगमा "(कहानी कहो या पहेली )|